शहजादा दास्तान
एक बूढ़ी औरत बेहताशा रोए जा रही थी। शहज़ादा दास्तान परेशान निगाहो से चारों ओर देख रहा था। वह अपने पसंदीदा घोड़े साकल्स पर सवार हो कर सैर के लिए निकला था। घोड़े को दौड़ाता हुआ वह उस जंगल की तरफ आ निकला। बहुत समय तक शिकार नहीं मिलने की वजह से थक हार कर वह वापस पलटने लगा था कि अचानक उसके कानो में किसी की रोने की आवाज़ सुनाई दी।
"उस बियाबान जंगल में रोने की आवाज़??" यह सुन कर वह रुक गया और हैरानी से इधर उधर देखने लगा। फिर आवाज़ की दिशा का अंदाज़ा लगाते वह घोड़ा उस तरफ ले गया,जिधर से आवाज आ रही थी। कुछ फासले पर उसे घास फूंस की बनी हुई झोपड़ी दिखाई दी।
रोने की आवाज़ उसी झोंपड़ी से आ रही थी। शहज़ादा दास्तान घोड़े से उतर पड़ा। घोड़े को यूही छोड़ कर वह झोंपड़ी की ओर बढ़ा।
झोंपड़ी के दरवाज़े पर पर्दा पड़ा हुआ था। शहज़ादा दास्तान दरवाज़े के क़रीब रुक गया। "कोई है... कोई है?"उसने दरवाज़े की तरफ मुँह घुमा के आवाज़ दी। "कौन है... आ जाओ अंदर आ जाओ!" अंदर से एक आवाज़ सुनाई दी ।
शहज़ादा दास्तान अपना सिर हिलाता हुआ झोंपड़ी का दरवाज़ा खोलकर झोंपड़ी दाखिल हो गया। अंदर जाने पर शहजादे ने देखा, झोंपड़ी ज़्यादा बड़ी नहीं थी। बहुत ही तंग और अंधेरा भी था।
शहजादे ने चारों ओर देखा,वहां एक पानी के घड़ा, एक छोटा सा संदूक और एक चटाई के सिवा कोई दूसरा सामान नज़र नहीं आ रहा था। चटाई पर एक बहुत ही बूढी औरत बैठी थी जिसके सिर के बाल बर्फ की तरह सफ़ेद थे और चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ था । और रोने की वजह से उसकी आंखे सुर्ख हो रही थी और चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था।
"आप कौन है बड़ी अम्मा और इस बियाबान जंगल में क्या कर रही हो?...और आप इस तरह से रो क्यू रही है?" शहज़ादा दास्तान ने उस बूढी औरत से एक के बाद कई सवाल पूछ लिया।
बूढ़ी औरत उसकी तरफ ही सवालिया निगाहों से देखने लगी।
"मै शहज़ादा दास्तान हूँ, फ़ारस के सुल्तान इरदान का छोटा बेटा। "शहज़ादा दास्तानने अपना परिचय कराते हुए कहा।
तब वह औरत चौंक कर हैरत भरी नज़रो से उसकी ओर देखने लगी। "क्या कहा तुमने तुम शहज़ादा दास्तान हो? रियासत फ़ारस के वली अहद। " 'उसके मुंह से हैरत से यही निकला। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक लहराने लगी थी। फिर वह जल्दी से उठ कर खड़ी हो गयी उसकी कमर झुकी हुई थी। या फिर वह शहज़ादा दास्तान के लिए सिर झुकाये हुई थी। वह जल्दी जल्दी हाथो से चटाई साफ़ करने लगी।
"ज़हे नसीब ज़हे नसीब शहज़ादा दास्तान आये है। और मेरे पास आपको बिठाने के जगह नहीं है। ओह्.. मैं क्या करू ..... मैं क्या करू?" वह इंतिहाई परेशान हो रही थी ।
"कोई बात नहीं बड़ी अम्मा इसमें परेशान होने की क्या बात है? मैं शहज़ादा होने का साथ इंसान भी तो हूँ और यह ज़रूरी तो नहीं की हर शहज़ादा ज़ृंगार और सोने चांदी से तख़्त पर बैठे। मै यही इस चटाई पर बैठ जाता हूँ। यहाँ बैठने से मेरी शान नहीं घटेगी।" शहज़ादा दास्तान ने मुस्कुराते हुए कहा और निहायत इत्मीनान भरे अंदाज़ में चटाई पर बैठ गया।
बूढ़ी औरत हैरान व परेशान निगाहो से उसके चेहरे को देखती रही फिर वह भी बैठ गयी। उसके चेहरे पर बला की चमक मौजूद थी।
"बड़ी अम्मा। .... क्या मैं आपकी परेशानी और रोने का सबब जान सकता हु। "शहज़ादा दास्तान ने चंद लम्हे के बाद बूढ़ी औरत से मुखातिब हो कर कहा।
"मेरी परेशानी और रोने का सबब जान कर क्या करोगे शहज़ादे । यह सब मेरे अपने कर्मो का फल है। जो, जो जैसा करता है वह वैसा ही भरता है। यह मझे मेरे लालच की सजा मिल रही है। मुझसे मेरे बारे में कुछ न ही पूछो तो बेहतर है। वरना मुझसे नफरत खाओगे और मुझे यूँही तनहा छोड़ कर चले जाओगे। "बूढ़ी औरत ने सर्द आह भरते हुए कहा।
"नहीं बड़ी अम्मा मैं आपको छोड़ कर नहीं जाऊंगा। आप मुझे अपने बारे में बतलाइए। हो सकता है कि मैं आपके किसी काम आ सकूं।" दास्तान ने आराम से जवाब दिया।
"नहीं शहज़ादे । तुम मेरे किसी काम नहीं आ सकते। मुझसे पूछो। मैं तुम्हे कुछ नहीं बता सकती। अगर मैंने तुम्हे उसके मुताल्लिक़ बतला दिया। तो तुम भी उसकी नहूसत का शिकार हो जाओगे। नहीं...नहीं मैं तुम्हे उस मनहूस हीरे के मुताल्लिक़ कुछ नहीं बताउंगी। "बूढी औरत फिर जल्दी से अपने मुंह पर यूं हाथ रख लिया जैसे कि उसके मुँह से गलती में कुछ गलत बात निकल गयी हो।
"मनहूस हीरा !, क्या मतलब यह आप किस मनहूस हीरे का तज़करा कर रही है। हीरे का आपके ज़िन्दगी से क्या वास्ता हो सख्त है। "शहज़ादा दास्तान ने हैरानी से पूछा।
"वही हीरा तो असल फसाद की जड़ है। जिसकी वजह से मैं आज उस हाल को पहुंची हूँ। इतना ही उसका नाम मेरे मुंह पर आ जाता। है फिर शहज़ादा दास्तान मैं तुम्हे यह मश्वरा दूंगी की तुम उस हीरे के मुताल्लिक़ कुछ न ही जानो तो अच्छा है। और वह हीरा मनहूस ही नहीं खूनी भी है। जो उसके बारे में जानने की कोशिश करता है वह फिर उसकी नहूसत का शिकार हो जाता है। और फिर उसके मुक़द्दर में तबाही और बर्बादी के सिवा कुछ बाक़ी नहीं बचता। मेरी तरह न ही चैन से वह ज़िंदा रहता है और न ही अपनी मर्ज़ी से मर सकता है। जाओ हरकोलेस चले जाओ यहाँ से मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूँ। क्यू ख़्वाह मखाह तुम अपने मुक़द्दर में तबाही और बर्बादी लिखवाना चाहते हो। उस शैतानी हीरे के चक्कर में मत पड़ो। इसी में तुम्हारी भलाई है।" बूढ़ी औरत ने जल्दी जल्दी रटे हुए लहजे में कहा।
शहजादे दास्तान ने देखा उसकी आंखे नम हो रही थी। शहज़ादा दास्तानचंद लम्हे हैरत ज़दा अंदाज़ में बूढ़ी औरत का चेहरा ताकता रहा फिर सिर हिलाते हुए कहने लगा।
"बड़ी अम्मा आपकी बाते बेहद अजीब और पुर इसरार मालूम हो रही है। एक तरफ दिल कहता है की मैं आप जैसी बुज़ुर्ग खातून की बाते मान लू । हुक्म के तहत यहाँ से वापस चला जाऊ। मगर दूसरी तरफ यही दिल उस बात पर मजबूर कर रहा है कि मैं इस अजीब हीरे मुताल्लिक़ ज़रूर जानने की कोशिश करू जिसे कभी आप खूनी कभी शैतानी और कभी मनहूस कह रही है। और आपके मुताबिक़ वह हीरा ही आपको उस हाल तक पहुंचने वाला है .आप मुझे बतलाइए। अब इश्तियाक़ बढ़ गया है की मैं उसके मुअल्लिक़ वह सब बाते सुनु जो आप जानती है।" शहज़ादा दास्तान ने यह इश्तियाक़ अमेज़ नज़रो बूढी औरत की जानिब देखते हुए कहा।
बूढ़ी औरत चंद लम्हे शहज़ादा दास्तान की जानिब गहरी नज़रो से देखती रही फिर एक गहरी साँस लेती हुई कहने लगी।
"ठीक है शहज़ादा दास्तान अगर तुम सब कुछ जानने के लिए इस क़द्र बेताब हो तो मैं तुम्हे उस हीरे के मुताल्लिक़ ज़रूर बताउंगी। मेरा फ़र्ज़ मैं तुम्हे रोकू ,मगर अब तुम ज़िद कर रहे हो तो मैं मजबूर हूँ इससे पहले कि मैं तुम्हे हीरे की और अपनी ज़िन्दगी की कहानी सुनाऊँ तुम्हे मुझसे एक वादा करना होगा। "बूढी औरत ने एक ठंडी साँस भर कर कहा ।
"वादा कैसा वादा "शहज़ादा दास्तान ने हैरानी से पूछा।
"उस हीरे की हक़ीक़त जान कर तुम्हे वह हीरा मुझसे लेना होगा। और तुम उसे लेने से किसी भी सूरत में इंकार। " बूढी औरत ने शहज़ादा दास्तान की जानिब बागौर देखते हुए कहा।
"हूँ उस हीरे की क़ीमत क्या होगी। "शहज़ादा दास्तान ने सोचने के से अंदाज़ में पूछा। "उस हीरे की हक़ीक़त ही जान ही लेना उसकी क़ीमत होगी।
शहजादा दास्तान हैरत से उस बूढ़ी औरत की तरफ देख रहा था।
शहज़ादा दास्तान , मेरी बात ध्यान से सुनो। हीरे की असलियत जान कर अगर तुमने हीरा मुझसे न लिया तो मैं और तुम दोनों जल कर राख हो जायँगे। उस हीरे पे शैतानी साया है जो किसी भी सूरत में हमें माफ़ नहीं करेगा। इसलिए मैं तुम्हे आखरी बात फिर तंबीह करुँगी की हीरे की कहानी मत सुनो ,अभी तुमने हीरे को देख भी नहीं है तुम आसानी से यहाँ से जा सकते हो । और अगर एक बार तुम्हारी इस मनहूस हीरे पर नज़र पड़ गयी तो तुम्हारा यहाँ से जाना न मुमकिन हो जायेगा। सोच लो मैं तुम्हे सोचने का चंद लम्हे दे देती हु। "बूढी औरत ने कहा।
"कुछ भी हो बड़ी अम्मा मैं इस अजीब हीरे की असल कहानी जान कर रहूँगा। आपकी बातो ने मेरा इश्तियाक़ इस क़द्र बढ़ा दिया है की अगर मैं इस अजीब और पुर इसरार हीरे के मुताल्लिक़ जाने बगैर यहाँ से चला गया तो मुझे सख्त कोफ़्त का सामना करना पड़ेगा और मैं सख्त बेचैन रहूँगा। ठीक है मैं आपसे वादा करता हूँ की हीरे की असल हक़ीक़त जान लेने के बाद इस हीरे को मैं आपसे ले लूंगा। चाहे बाद में उसका मुझे बड़ा खामियाज़ा ही क्यू न भुगतना पड़े।" शहज़ादा दास्तान ने सर झटकते हुए जवाब दिया।
अब बूढी औरत एक सर्द आह भर कर उठ खड़ी हुई वह झोपड़ी के एक कोने में पड़े हुए संदूक की जानिब बढ़ी और उसका ढकना उठा कर उसे टोटलने लगी। फिर उसने संदूक से सियाह रंग की थैली निकाली और संदूक बंद करके थैली ले कर शहज़ादा दास्तान के क़रीब आगयी।
"लो इसे खोल कर खुद ही इसे देख कर इससे कहना की तुम शहज़ादी ज़ैनीफर के मुताल्लिक़ जानना चाहते हो । तुम्हे यह हीरा सब कुछ बता देगा। "बूढी औरत ने थैली शहज़ादा दास्तान की जानिब बढ़ाते हुए कहा।
शहजादे दास्तान ने हैरत से बुढ़िया की जानिब देखते हुए उससे थैली ले ली।
शहजादे ने देखा थैली वज़नी थी शहज़ादा दास्तानने उसका मुंह खोल कर उसमे हाथ डाला , जब उसका हाथ थैली से बाहर आया तो उसके हाथ में एक हलके नीले रंग का बहुत बड़ा हीरा जगमगा रहा था। हीरे में से छोटे छोटे सितारे से कूदते हुए महसूस हो रहे थे। शहज़ादा दास्तान हैरत से भरी नज़रो से उस हीरे की जानिब देख रहा था। उसने ज़िन्दगी में पहली बार इतना बड़ा और इस क़द्र चमकदार हीरा देखा था। चंद लम्हे हैरानी से वह हीरे को उलट उलट कर देखता रहा फिर उसने बुढ़िया की जानिब देखा बुढ़िया खामोश और निहायत संजीदा अंदाज़ में उसकी तरफ देख रही थी।
"यह हीरा तो बहुत क़ीमती मालूम होता है। यह आप के पास कहा से आया?" शहज़ादा दास्तान ने बुढ़िया से पूछा। "इन सब सवालो का जवाब तुम्हे इस हीरे से ही मिलेगा शहजादे। तुम हीरे को गौर से देखो और उससे शहज़ादी ज़ैनीफर के मुाल्लिक़ पूछो?" बुढ़िया के लब हिले।
शहज़ादा दास्तान ने हैरान होते हुए गौर से एक हीरे को देखना शुरू किया।
"ऐ हीरे मैं शहज़ादी ज़ैनीफर के मुताल्लिक़ जानना चाहता हूँ ।वह कौन है ?"अभी शहज़ादा दास्तान ने इतना ही कहा था कि एकदम से उसे एक ज़ोर दार झटका लगा था। एक लम्हे के लिए उसे यूं महसूस हुआ जैसे उसके सारे जिस्म में बिजली सी दौड़ गयी हो। उसकी आँखों के सामने अँधेरा आ गया था। मगर दूसरे ही लम्हे अँधेरा उसकी आँखों के सामने से छट गया।
शहज़ादा दास्तान ने देखा और फिर दूसरे ही लम्हे बुरी तरह से उछल पड़ा और घबराये हुए अंदाज़ में उठ कर खड़ा हो गया। उसके चौकने और हैरान होने की वजह वह झोपड़ी थी। जिसमे चंद लम्हे क़ब्ल बुढ़िया के साथ मौजूद था।
लेकिन अब न ही उसके सामने बुढ़िया थी न झोंपड़ी और न ही वह जंगल था, जंहा शहज़ादा दास्तान सैर की गरज़ से अपने घोड़े साकल्स के साथ आया था। अब उसके क़दमों तले से ज़मीन गायब थी वह उस वक़्त आसमान की बुलंदियों पर उड़ रहा था। और उसके इर्द गिर्द बादल उड़ते हुए दिखाई दे रहे थे। उसके हाथ में अलबत्ता वह हीरा बदस्तूर था जो उसे बुढ़िया ने दिया था।
शहज़ादा दास्तान फ़िज़ा में निहायत तेज़ी से इस तरह से उड़ता हुआ एक तरफ जा रहा था जैसे वह कोई परिंदा हो। शहज़ादा दास्तान को इस बात का अहसास ज़रूर हो रहा था कि किसी नज़र न आने वाली हस्ती ने उसे पकड़ रखा हो और वह उसे फ़िज़ा में उड़ाए ले जा रही हो ।साथ ही शहज़ादा दास्तान यह भी महसूस कर रहा था कि जैसे उसका जिस्म ठोस पत्थर का बन गया हो। न ही वह अपनी मर्ज़ी से हरकत कर सकता था,न ही नज़रे घुमा कर इधर से उधर देख सकता था। उसके होंठ भी एक दूसरे से चिपक गए थे जिसकी वजह से वह मुंह से आवाज़ भी नहीं निकाल सकता था। न जाने क्यू शहज़ादा दास्तानदिल में खुद को इस अजीब व गरीब मुसीबत में मुब्तला पा कर थोड़ा सा डर गया।
इसी लम्हे अचानक शहज़ादा दास्तान को यूं महसूस हुआ जैसे उसके कानो में उसी बुढ़िया की आवाज़ सुनाई दी। गौर किया वाक़या बुढ़िया उससे मुखातिब थी।
"शहज़ादा दास्तान अपनी आंखे बंद रखो। अभी चंद ही लम्हो में तुम मेरी ज़िन्दगी में दाखिल होने वाले हो। जब तक मैं न कहूं अपनी आंखे हरगिज़ मत खोलना।" बूढ़ी औरत उससे चीख चीख कर कह रही थी। दास्तान ने अपनी आंखे बंद कर ली। हवा के तेज़ थपेड़े उसके जिस्म से टकरा रहे थे। वह काफी देर तक यूँही खुद को उड़ता हुआ महसूस करता रहा फिर अचानक उसने महसूस किया जैसे उसके क़दम ठोस ज़मीन से आ लगे हों।
"शहज़ादा दास्तान अब तुम अपनी आंखे खोल सकते हो।" इस लम्हे बुढ़िया की आवाज़ शहज़ादा दास्तान के कानो में पड़ी और शहज़ादा दास्तानने आंखे खोल दी।
उसने जैसे ही आंखे खोली उसकी नज़र एक निहायत खूबसूरत लड़की पर पड़ी। लड़की की आंखे बड़ी बड़ी थी लम्बे घने बाल थे जिसे उसने नीले और सुर्ख रंग के एक रुमाल से बांध रखा था। उसके माथे पर एक सोने का बड़ा सा झूमर था । शक्ल व सूरत से वह कोई शहज़ादी ही मालूम हो रही थी। शहज़ादा दास्तानएक निहायत खूबसूरत और क़ीमती साज़ व सामान से आरास्ता कमरे में मौजूद था।
"शहज़ादा दास्तान शहज़ादी साहिबा की खिदमत में सलाम अर्ज़ करता है। "शहज़ादा दास्तानने उसके मर्तबे का ख्याल करते हुए और सर को क़द्रे खम देते हुए निहायत मलामत भरे अंदाज़ में कहा।
उसने देखा उसके सर झुकाने से उस लड़की ने भी इसी तरह झुकाया था और साथ ही उसके लब हिले थे। उसके लब ज़रूर हिले थे लेकिन उसकी आवाज़ शहज़ादा दास्तान को सुनाई नहीं दी थी। "आपने मुझसे कुछ फ़रमाया। शहज़ादा दास्तान दुबारा मुखातिब हुआ।
एक लम्हे के लिए मुंह से निकलने वाली आवाज़ से वो परेशान हो गया। उसकी आवाज़ बेहद भरी और बारअब थी मगर अब उसे यु मालूम हुआ था जैसे बोला तो वह हो लेकिन उसके मुंह से आवाज़ किसी लड़की की निकली हो।
"यह मेरी आवाज़ को क्या हो गया है शहज़ादी ?"शहज़ादा दास्तानने परेशान हो कर अपने सामने मौजूद खूबसूरत लड़की से मुखातिब हो कर कहा और अपने गले पर हाथ फेरने लगा।
फिर यह देख कर उसकी हैरत की इंतिहा न रही की सामने मौजूद खूबसूरत लड़की भी इसी के अंदाज़ में अपना गला मसल रही थी।
शहज़ादा दास्तानने इस बार जो गौर किया हैरत की शिद्दत से वह बुरी तरह से उछल पड़ा। वह अपने सामने जिसे खूबसूरत लड़की समझ रहा था वह उसका अपना रूप था। उसके सामने कोई लड़की नहीं बल्कि वह खुद एक आदम कद आईने के सामने खड़ा था।
"अरे बाप रे यह तो मैं खुद हु मगर मैं लड़की कबसे और कैसे बन गया।" उसने परेशानी के आलम में खुद को देखते हुए शदीद हैरत ज़दा लहजे में कि उसी वक़्त शहज़ादा दास्तानको अपने अक़ब में किसी के क़दमों की आवाज़ सुनाई दी।
वह तेज़ी से पलटा उसके पीछे तीन निहायत हसींन लड़किया मोदबाना अंदाज़ में खड़ी थी ।
"आप तैयार हो गईं शहज़ादी साहिबा!, आईये बादशाह सलामत और मेहमान आपका बेचैनी से इंतज़ार कर रहे है। "एक कनीज़ ने कहा उसका रुख शहज़ादा दास्तान की जानिब ही था।
"मेरा इंतज़ार कर रहे है। तुम्हारा दिमाग तो ठीक है। तुम्हे शहज़ादी नज़र आ रहा हूँ। मैं शहज़ादा दास्तान हूं। मैं शहज़ादा दास्तान हूँ। फारस का वली अहद।" शहज़ादा दास्तान ने उसकी बात सुन कर गसीले लहजे में कहा। "दास्तान । यह आप क्या कह रही है शहज़ादी साहिबा और आप हमसे मज़ाक़ फारमा रही है। " उसी कनीज़ ने पहले हैरानी से और फिर हंसते हुए कहा उसके साथ दूसरी कनीजें भी हंस पड़ी थी।
"क्या कहा मैं तुम्हारे साथ मज़ाक़ कर रही हो। ओह्ह मेरा मतलब है कर रहा हूँ मैं तुम लोगो को जानती....ओह्ह जानता तक नहीं फिर मैं तुम्हारे साथ मज़ाक़ क्यू करूंगी? शहज़ादा दास्तान ने परेशान कुन अंदाज़ में कहा ।
उसका तलफ़्फ़ुज़ बार बार बिगड़ रहा था जैसे सच मुच वह लड़की बन गया हो।
"दास्तान । तुम इस वक़्त शहज़ादी ज़ैनीफर की ज़िन्दगी हो चुके हो। तुम्हारा रूप शहज़ादी ज़ैनीफर का है जो हालात और वाक़्यात तुम्हारे साथ पेश आरहे है। उनसे समझौता करो। तुमने खुद ही मनहूस हीरे की दास्तान सुनने की ज़िद की थी ।अब जब तक हीरा तुम्हारे साथ है तुम्हे इसी तरह अपनी ज़िन्दगी गुज़ारनी होगी। "अचानक दास्तान के दिमाग में उसी बुढ़िया की आवाज़ सुनाई दी और शहज़ादा दास्तान चौंक कर इधर उधर देखने लगा मगर उसे बुढ़िया कही दिखाई नहीं दी।
"हीरा हीरा ! कहाँ है। और तुम कहाँ हो? तुम मुझे दिखाई क्यू नहीं दे रही।" शहज़ादा दास्तानने अपने खाली हाथो और चारो तरफ नज़रे घुमाते हुए पूछा मगर उस बुढ़िया ने कोई जवाब न दिया।
"कौन कहा है शहज़ादी साहिबा। और आप किस हीरे की बात कर रही है। नसीब दुश्मा हुज़ूर की तबिअयत न साज़ मालूम होती है। "एक कनीज़ ने आगे बढ़ कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"हटो। ..परे हट जाओ.. खबरदार मुझे छूने की कोशिश मत करो। मैं शहज़ादी नहीं हूँ। मैं शहज़ादा दास्तान हु"
शहज़ादा दास्तान ने भड़कते हुए कहा और कनीजें हैरत भरी नज़रो से उसकी जानिब देखने लगी। और परेशान अंदाज़ दूसरे का चेहरा ताकने लगी।
"जाओ... जाओ यहाँ से। मुझे कुछ देर के लिए तनहा छोड़ दो , मैं भी चंद लम्हो के बाद खुद आ जाऊंगी। उफ़ आ जाऊंगा। "शहज़ादा दास्तान ने आखरी लफ्ज़ शदीद झुंझलाहट के आलम में दिया। उसकी आवाज़ बदस्तूर निस्वानी थी।
वह सर पकड़ कर वहां पर मौजूद मसहरी पर बैठ गया।
कनीजें उसकी जानिब हैरान व परेशान नज़रो से देखती हुई वहा से उलटे क़दमों वापस चली गयीं।
उसी वक़्त शहज़ादा दास्तान की नज़र पिटके में बंधी हुई एक सियाह थैली पर पड़ी। उसने झपट कर थैली खोल ली। थैली से उसने हाथ डाल कर वही चमकता हुआ नीलगो मायल हीरा निकल लिया जो उसे बुढ़िया ने दिया था। उस हीरे को देख कर न जाने क्यू शहज़ादा दास्तान का खून खौल उठा।
उसी लम्हे हीरे में से चंद चमकते हुए सितारे निकल कर शहज़ादा दास्तान की आँखों में पड़े। शहज़ादा दास्तान को हल्का सा झटका लगा और वह यक्खत मसहरी पर से उठ खड़ा हुआ। हीरे उसने वापस थैली में डाला और थैली दुबारा पिटके से बांध ली। फिर उसने दरवाज़ा की जानिब देखते हुए ज़ोर से तीन बार ताली बजायी , फौरन ही एक मुहाफ़िज़ कनीज़ अंदर दाखिल हुई।
"हुक्म शहज़ादी साहिबा!"कनीज़ ने सर झुका कर निहायत अदब लहजे में कहा।
"हमारी कनीज़ खास को हमारे पास भेजो। जल्दी "उसने हूकमत भरे लहजे में उससे कहा और वह सर हिलाती हुई उलटे क़दमों कमरे से बाहर निकल गयी।
चंद लम्हे में पहले वाली कनीज़ अंदर दाखिल हुई उसके चेहरे पर परेशानी टपक रही थी।
"थेओडरा। इतनी देर कहा लगा दी , मैं कब से यहाँ तैयार बैठी तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। जल्दी चलो अब्बा हुज़ूर और मेहमान हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे। "
शहज़ादा दास्तानने ज़नाना आवाज़ में कहा और कनीज़ थेओडरा एक बार फिर हैरानी से उसकी जानिब देखने लगी ।.जैसे उसकी समझ में न आ रहा हो की आखिर शहज़ादी को हो क्या रहा है जो पल में कुछ और पल में कुछ और नज़र आ रही है। मगर बेचारी क्या समझती की वह असल में शहज़ादा दास्तान है जो अब हीरे का शिकार ज़ैनीफर बन गया था। उसका ज़ेहन तो उसके अपना था मगर उसके मुंह से निकलने वाले बोल उसके अपने नहीं थे।
उसके ज़ेहन में आँधिया सी चल रही थी। यह हक़ीक़त थी की आज से पहले शहज़ादा दास्तान ने खुद को इस क़द्र बेबस कभी नहीं पाया था।
उसका ज़ेहन तो मरदाना था मगर उसकी आवाज़ और अंदाज़ जिस्म शहज़ादी ज़ैनीफर का जिसके मुताल्लिक़ वह कुछ जानता भी नहीं था। न जाने उसके साथ क्या होने वाला था।
शहज़ादी ज़ैनीफर कौन थी और उसके माँ बाप कौन थे यह सब बाते शहज़ादा दास्तानको बेहद परेशान कर रही थी।
"आईये शहज़ादी साहिबा। क्या सोच रही है। "कनीज़ थेओडरा ने उसे सोचते पाकर क़द्रे सहमे हुए और मोदबाना अंदाज़ में कहा। शहज़ादा दास्तानजो उस वक़्त शहज़ादी ज़ैनीफर के रूप में था चौंक कर अपने खयालो से बाहर निकल आया
"हूँ, कुछ नहीं , आओ। "उसने जल्दी से कहा और फिर बेइख्तियार तौर पर उसके क़दम दरवाज़े की जानिब उठने लगे।
Anjali korde
15-Sep-2023 12:06 PM
Nice
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Babita patel
15-Sep-2023 10:25 AM
Nice
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hema mohril
13-Sep-2023 08:40 PM
Fantastic
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